कानुन और व्यवस्था के मुँह पर जोरदार तमाचा।

कानुन और व्यवस्था के मुँह पर जोरदार तमाचा।
          कृष्ण देव सिंह्
  अनुज वधू,भगिनी,सुत -नारी ;रे सठ ये कन्या सम चारी।
  इन्हुँ कुद्दष्टि विलोकहि जोई,ताहि हते कछु पाप ना होई।
                    रामचरित्र मानस की इंन पंक्तियों का आज के सन्दर्भ में  आशय है कि नाबालिग कन्या सहित ऐसे चार वर्ग के पापियो को मारने मे कोई दोष नहीं है।
              अब जब हैदराबाद पुलिस ने दुश्कर्म  के कथित चार दोषियो का एन्काउण्टर कर दिया है तो  इस घटना को त्योहार का रूप दिया जा रहा है लेकिन दूसरे तरफ क्या यह कानूनी रूप से पुलिस राज का भय  नही दिखाई पड रहा है?क्या आज झ्स तरह के उत्पन्न हालात कानुन और व्यवस्था के मुँह पर जोरदार तमाचा नही है?क्या हम एक र्बबर समाज में जीने के लिए दिनोंदिन मजबूर नहीं हो रहें हैं? क्या ऐसे एन्काउटर सिर्फ दबे- कुचले लोगों के लिए आराक्षित है?क्या सामर्थवान लोगों को एन्काउटर से मुक्त रखा गया है?ऐसे अनेक प्रश्न अब देश के सामने उत्पन्न नही हो गये है .यह मामला पूरे देश को क्यो झकझोर रहा है  ?उसका मूल कारण राजनेताओं व सामर्थवान लोगों का अपराधियों के प्रति समर्थन और लचर कानुन व न्याय व्यवस्था नही है?
         2012 से निर्भया मामला लटका हुआ.है ;उसके माता पिता खाक छानते फिर रहे है।सरकार का एक नियम है कि कोई कागज तीन दिन से अधिक किसी टेबुल पर पेडिंग नहीं रहना चाहिए तो यह नियम
 राष्ट्रपति ,राज्यपाल ,मुख्यमंत्री, और उच्च न्यायपालिका पर भी लागू है।निर्भया केस जहाँ पर पेडिंग रहा हे ;उन सबपर अपराधिक मुकदमा चलाना चाहिए।आधी रात को न्यायपालिका हमारी बैठी है ;यदि एकबार निर्भया के दोषियों की  सजा लागू करने के लिये बैठ जाती तो; जो  भ्रम हैदराबाद पुलिस के लिये है ;वह नहीं होता.
                 मै   कहना चाहता हूँ कि हमारी माताओं ,बहनो ,और बेटियों ने किस प्रकार मिठाइयों बाँटी है और दीवाली मनायी है।क्या हम पुलिस-राज की तरफ नहीं बढ रहे है ?  सावधान हो जावे क्योंकि कही लोकतंत्र हमारे हाथो से निकल ना जाय?अभी भी वक्त है; पुराने मामलो का त्वरित न्याय करें? हलांकि इससे बलात्कारियों में भय जरूर पैदा हुआ होगा परन्तु 'न्याय के सिद्धांत' और 'भय पैदा करने के तरीकों' के बीच विरोधाभास भी पैदा हो गया है?क्योंकि पुलिस एनकाउंटर पर  जो खबरें है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह फेक एनकाउंटर था. एनकाउंटर के नियमों का पालन नहीं हुआ? आरोपी निहत्थे थे, गोली पैर पर चलानी थी.पर  तुरंत न्याय के नतीजे आज अच्छे लगेंगे. लेकिन धीरे - धीरे करके क्या ऐसे समाज का निर्माण नहीं होगा जहां पुलिस की पिस्तौल को खुली छूट मिल जाएगी?वह जब चाहे, जिसे चाहे, जैसे चाहे एनकाउंटर में मार गिराएगी.
         पुलिस के फर्जी एनकाउंटर का खूनी इतिहास रहा है. निर्दोषों का खूब भी बहाया है उसने. आज  बलात्कार के खिलाफ पुलिस एनकाउंटर का समर्थन क्या समाज के लिए एक और नई समस्या खड़ी नहीं करेंगी?
क्या कल ये पुलिस इतनी निरंकुश नही होगी कि एक ट्रैफिक नियम तक तोड़ने पर एनकाउंटर कर देगी?आज इतरा रहे हैं, कल सब निशाने पर होंगे.क्या हम समझ नहीं पा रहे हैं कि किस खतरनाक परिपाटी को शुरू कर रहे है?
        बलात्कारियों के पुलिस एनकाउंटर पर ख़ुशी मनाने वालों को शायद यह अहसास नहीं है कि वे पुलिसिया बर्बरता के लिए रास्ते चौड़े कर रहे हैं। पुलिस किसी को भी अपराधी बताकर मुठभेड़ में मार देगी और लोग तालियां बजाते रहेंगे।हमारा ज़ोर हमारी न्याय व्यवस्था को मज़बूत, पारदर्शी बनाने पर होना चाहिए, न्याय मिले और जल्दी मिले इसके लिए आवाज़ उठानी चाहिए न कि पुलिस मुठभेड़ों में  आरोपियों-अपराधियों के मारे जाने का समर्थन करना चाहिए। मामला मानवाधिकार का नहीं, न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास का है।
.     अगर पुलिस और आरोपियों के बीच क्रॉस फायरिंग हुई तो आरोपियों के पास हथियार कहां से आए? 
उन्होंने पुलिस के हथियार छीन लिए थे तो उन्हें बिना हथकड़ी के क्यों ले जाया गया? रात को तीन बजे कौन सा रिक्रिएशन होना था, जबकि दिन में पुलिस जिस इलाके को चाहे सील कर सकती थी। तीन बजे घटनास्थल पर गए तो एनकाउंटर पौने छह बजे कैसे हुआ? आरोपियों के पास इतनी बुलेट कहां से आई आधा घंटे से ज्यादा फायरिंग चली? वे चारों लड़के क्या प्रोफेशनल शूटर थे जो पुलिस से मुठभेड़ कर रहे थे? 
         लगता तो है फ़र्ज़ी एनकाउंटर, मगर तेलंगाना पुलिस ने चारों रेप अभियुक्तों को मारकर सराहनीय काम  किया है. ये दरिंदे वहीँ मारे गए, जहाँ उन्होंने रेप कर महिला डॉक्टर को जलाया था. ऐसा ही बाक़ी रेपिस्टों के साथ होना चाहिए. ऐसे दरिंदे मानवाधिकार के दायरे में नहीं आने चाहिए?लेकिन प्रश्न है क्या प्रमाणित हो गया था कि ये चारों अपराधी ही थे।
     हलांकि क्या यह सत्य नही है कि बहुत हुआ कोर्ट से लुका-छिपी. 10 -10  साल में रेप पर फैसला नहीं होता. और कोई रास्ता नहीं दिखता खर-पतवार की तरह उग आये ऐसे दरिंदों को उखाड़ फेंकने के वास्ते. क़ानूनी प्रक्रिया और अंतहीन क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम ने लोगों का भरोसा खो दिया है?क्या कैदी का इनकाउंटर शर्मनाक, मानवाधिकार का उलंघन,पुलिस अभिरक्षा की नाकामी एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था पर हमला नही है?न्यायालय सजा सुनाता है। बलात्कार और फिर पीड़िता को जिंदा जलाने वालों को हर व्यक्ति चाहता है कि मौत की सजा मिले, जिससे कि अपराधियों में खौफ पैदा हो। लेकिन जन आक्रोश के मद्देनजर पुलिस एनकाउंटर करके एक नयी परिपाटी शुरू करना  खतरनाक है। ?
*बुघवार मल्टीमीडिया न्यूज नेटवर्क,
भोपाल/पटना/ रायपुर दिनांक6दिसम्बर2019