कभी सोचा है कि हम मजबूर क्यों हो जाते है?

कभी सोचा है कि हम मजबूर क्यों हो जाते है?
               कृब्ण देव सिंह
       अपनी मर्यादा की रक्षा खुद करनी होती है।कोई भी ब्यक्ति अपने पद या प्रोफेसन के सम्मान का अधिकारी तभी बन पाता है जबतक वह निष्काम कर्म करता है।जैसे ही वह अपने विवेक का तराजू को किसी पक्ष में झुका कर डँडी मारना शुरू करता है ।वह सम्मान खो देता है।मुझसे अर्थात पत्रकार सेआपको निष्पक्षता की उम्मीद है।आप हमारे जैसे लोगों में से कुछ को अपना आदर्श भी मानते रहे होगें।लेकिन दुख तब होता होगा कि हम पत्रकार / सम्पादक/ समीक्षक / लेरवक / ऐंकर आपको आवश्यक मुद्दों से  भटकाने का काम कर रहे हैं।क्योंकि हमें आपकी नजर में जेएनयू जामिया के प्रतिभावान बच्चों पर जुल्म नहीं दिख रहा ?किसानों की आत्महत्या पर मौन हैं?मजदूरों की छँटनी हो रही है ,बैंक दिवालिया हो रहे हैं,किस क्षेत्र में सरकार जनहित का खयाल रख रही है यह बता दीजिये?आप घोषित रूप से सरकार समर्थक बन गये हैं?अपको बहुत दुख होता है हमारे जैसे श्रमजीवी पत्रकारों का पोस्ट पढ़कर? लेकिन कभी गंभीरता से सोचा है कि ऐसा होता क्यों है?क्यों हमारे जैसे लोग मजबूर हो जाते है?
           किसी भी विषय पर अपने विचार प्रकट करना हर भारतीय का मौलिक अधिकार है. यह कतई ज़रूरी नहीं कि आप उससे सहमत ही हों. किसी को 'निष्पक्ष' होने की सनद देने वाले और बिन माँगी सलाह देने वाले आप कौन होते हैं?पत्रकार एक प्रज्ञावान व्यक्ति होता है, रोबोट नहीं.आपको मालूम होना चाहिए कि-
"फेअर जर्नलिज़्म में ऑब्जेक्टिविटी होती है, न्यूट्रलिटी नहीं. ऑब्जेक्टिविटी को न्यू्ट्रलिटी से कन्फ़्यूज़ नहीं किया जाना चाहिए.
"ऑब्जेक्टिविटी का मतलब है तथ्यों पर आधारित तथ्य, जो व्यक्तिगत विश्वासों या भावनाओं से रंचमात्र भी प्रभावित न हो. जबकि न्यूट्रलिटी का आशय युद्ध , तर्क आदि में किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं किये जाने की स्थिति से है.
"राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' भी कुछ ऐसा ही कह गये हैं-
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध!
"OBJECTIVITY means the fact of being based on facts and not influenced by personal beliefs or feelings.
"NEUTRALITY is the state of not supporting either side in an argument, war, etc."
       हमसे उम्मीद न करें कि हम अभद्रता और अशिष्ट भाषा बर्दास्त करेंगें।हम देश के उच्चकोटी के पत्रकार / समाज सेवक हों या न हों लेकिन  क्या हमने इमानदारी से नेतृत्व  नहीं किया है ?.बल्कि उनके दिलों पर राज किया है।आदर्श', प्रतिबद्धता और सिद्यान्तों की वलीवेदी पर क्या हमने भरपुर आहुती नहीं दी है?क्या हमारी लेखनी में जानकारियों और अनुभव का खज़ाना कम है?
इन सब के बावजूद क्या मुक्षे बहुत सारे पोस्ट को हेडलाइन देखकर ही आगे नही बढ़ जाना चाहिए?क्या यह सत्य नहीं है कि आजकल अधिकांश लेख/पोस्ट एकांगी चल रही है, इस लिए दूर रहता हूं,लेकिन फिर भी आप सबका सम्मान दिल से है।
**बुघवार मल्टीमीडिया नेटवर्क