सड़क और षडयंत्र की राजनीति
कृष्ण देव सिंह
भोपाल। कांग्रेस में केन्द्रीय नेतृत्व की आड़ में राजनीतिक षड़यंत्रों की राजनीति तथा सड़क पर संघर्ष करने का चलन पुरानी है ।लेकिन 15वर्षो तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विपक्ष में रहने के कारण षडयंत्रकारी नेताओं का विशिष्ठ गुण शुप्त अवस्था में चला गया था परन्तु सत्ता का सुख एक वर्ष प्राप्त कर लेने के वाद पुनः अन्दर _ वाहर होने को वेताब है। मध्य प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी के चलते उसकी मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रही हैं। तो छत्तीसगढ़ में भी अन्दररवाने अब कुलबुलाहट शुरू हो गया है।दुसरी ओर असन्न राज्य सभा चुनाव के कारण दोनो ही राज्यों में नई -नई राजनीतिक चाले चलने की खबरे आने लगी है जिसके केन्द्र में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव श्रीमती प्रियंका गांधी वाड्रा,ज्योतिरादित्य राजे सिंधिया तथा दो पूर्व मुख्यमंत्री सर्वश्री मोतीलाल वोरा और दिग्विजय सिंह हैं।क्योंकि पुरी राजनीतिक कयावद सिर्फ झ्स वात के लिए किया जा रहा है कि श्री सिंघिया को छोडकर शेष तीनोंके लिए पुनः राज्य सभा में भेजने का मार्ग सुगम कर दिया जावे और इसके लिए प्रियंका जी का भरपुर आड़ लिया जावे ताकि अन्य कोई साफ सुथरी छवि वाला प्रातिवद्ध पार्टी का कार्यकत्ता उच्च सदन में जाकर झ्न सब के लिए प्रतियोगी सावित नही होने पावे।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले सोमवार को ग्वालियर में फिर दोहराया कि वे सड़क पर उतरने वाले बयान पर कायम हैं। इससे पहले सिंधिया ने अतिथि शिक्षकों के मामले पर सड़क पर उतरने का बयान दिया था। अब सड़क पर उतरने वाले बयान मामले में काफी तूल पकड़ लिया है। सिंधिया के बयान के बाद सीएम कमलनाथ ने भी काफी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि सिंधिया सड़क पर उतरना चाहते हैं तो उतर जाए। प्रदेश कांग्रेस पार्टी की आपसी असमंजस के अब कई मायने निकाले जा सकते हैं। इस बयानबाजी से पार्टी की आपसी अंतर्कलह के साथ-साथ वर्चस्व की भी लड़ाई प्रदर्शित होने लगी हैं। यह बात सच है कि सिंधिया ने सरकार को आईना दिखाया है, जिसे कमलनाथ सरकार देखना नहीं चाहती है। सड़क पर उतरने वाली नसीहत के पीछे सिंधिया को सरकार को अपने वचन पत्र की याद दिलाना भर था, जो कांग्रेस के चुनाव के पहले दिये थे। सिंधिया प्रदेश की राजनीति के मझे हुए और जनता से जुड़े नेता हैं। वे आमजनों के बीच जाते हैं। कमलनाथ सरकार को अपने वादों पर खरी उतरना है ।उनकी चिंता है किआम जनता के बीच में पूरी पार्टी की बदनामी नहीं होनी चाहिए।जिसके लिए ही उन्होंने सड़क पर उतरने का बयान दिया। आखिर यह बयान उन्होंने स्वयं के लिए नहीं पार्टी और सरकार के हित में दिया है। अगर सीएम कमलनाथ अपनी सरकार के वादों और वचनों को निभानों में नाकामयाब होते हैं तो वे कमलनाथ खुद जिम्मेदारी से नही वच सकते हैं। यदि वचनों को निभाने में पैसों की कमी है तो आईफा अवॉर्ड जैसे आयोजन के लिए सरकार के पास कहां से पैसे आ रहे हैं। आखिर इस आयोजन में भी तो करोड़ों रूपए खर्च होंगे।
देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को सिंधिया की और उनके बयान को किस तरह लेती है तभा राज्य सभा के लिए चयनित प्रत्यासियों का चेहरा कौन = कौन है। झ्ससे मध्यप्रदेश तथा घत्तीसगढ़ दोनों ही राञ्यों की सत्तादल की अन्दरूणी राजनीति का भी प्रकटीकरण होगा।क्योंकि श्री सिंधिया के इस बयान के पीछे बहुत बड़ा संदेश छुपा है, जो निश्चित रूप से दोनों ही राज्य सरकार से जुड़ा है। वैसे भी सिंधिया एक वरिष्ठ नेता हैं और कांग्रेस उनके और परिवार के बलिदानों को भुला नहीं सकती है। आज प्रदेश में यदि कमलनाथ सरकार चल रही है तो वह सिंधिया की बदौलत ही चल रही है। यदि सिंधिया चाह लें तो एक दिन भी सरकार नहीं चल सकती है। इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया की नसीहत को प्रदेश सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती है। यदि उन्होंने कुछ बोला है तो सोच समझ कर ही बोला गयाहोगा।देखना दिलचस्प होगा कि मध्य प्रदेश की कमलनाथ _ दिग्विजय सिंह सरकार छत्तीसगढ़ की भूपेश वधेल = डा० चरणदास मंहत सरकार किस दिशा में आगे बढ़ती है और उनके उपकृतों में और कौन- कौन लोग सामिल किये जाते है?वैसे दोनों ही प्रदेशों के नेतृत्व कासंभल जाना चाहिए क्योकि उन्हें सत्ता प्राप्त किये हुए एक वर्ष से अधिक हो. चुके है?
बुधवार बहुमाध्यम तंत्र