कोरोना के खिलाफ जारी जंग में शामिल हूँ
कृब्ण देव सिंह
भोपाल,6अप्रेल2020, इतने दिनों के लाकडाउन से प्रकृति में मुस्कुराहट लौटने को है। पता है आज सुबह अरसे बाद मुझे कबुतर की गुडगुड़ा४ना और तोते की आवाज. सुनाई दिए, सच कहूं तो बचपन याद आ गया। अपने पुरखों के घर ,गांव,नदी के पार बगौचा और फुलवारी ,खेत की याद आ गई। तीन चार दिनों से गौरैया चिंडिया और कुछ ऐसे पक्षियों की आवाज सुनाई देने लगी है जो हम बचपन में भिलाई और अपने गॉव में सुना करते थे। खैर वह पक्षी मुझे दिखाई तो नहीं दे रहे हैं लेकिन उनकी जानी पहचानी मीठी आवाजें हमें हमारे अपनो की याद दिला रहे हैं जिसमें अब कुछ अजीज , जिनके बगैर हम जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे उनकी बस स्मृति शेष है। अगर शहरों में ये परिवर्तन है तो गांव मे तो प्रकृति खिलखिला रही होगी।रात के सन्नाटे में भोपाल स्थित मेरे निवास की कालोनी में कुत्तों का एकक्षत्र राज्य स्थापित हो गया ह्रै और देर रात तक वे तरह -तरह की आवाज निकालकर अपनी सल्तनत का उद्घोष करते रहते हैं।
मेरा परिवार लाक डाउन का पूरी निष्ठा और कडाई के साथ पालन किया है और आगे भी करते रहेगा ।मेरा छोटा परिवार हलांकि चार जगह विभक्त हो गया है परन्तु हम सहमत हैं कि अगर पर्यावरण बचाना है तो कोरोना वायरस पर विजय प्राप्ति के बाद भी सरकार को वर्ष में एक वार कुछ समय/ दिन के लिए लाक डाउन करने की घोषणा करनी चाहिए और लोगों को कडाई के साथ पालन करना चाहिए।मेरी नजर में प्रकृति को बचाने का यह नायाव रास्ता है जो हम सब आज अनुभव कर रहे ।हलांकि कोरोना की यह लड़ाई का ऊंट किस करवट बैठेगा यह अभी तक किसी की समझ में नहीं आ रही है। युद्ध की स्थिति है , दुश्मन की पहचान भी हो गयी है लेकिन पता नहीं है कि वह किस तरफ से आयेगा । कोरोना नाम का दुश्मन कहीं से भी घुस कर इंसानों की जान ले रहा है।विश्व की अर्थव्यवस्था पर ज़बरदस्त हमला हुआ है । सभी दुआ कर रहे हैं कि किसी तरह इस दुश्मन से जीत हासिल हो । संयुक्त राष्ट्र ने तो कह ही दिया है कि कोरोना के खिलाफ जारी संघर्ष दूसरे विश्वयुद्ध से भी बड़ा है तथा नुक्सान भी उससे ज्यादा होगा।
भारत की जनता ने पहले भी युद्ध के समय अपनी आज़ादी की लड़ाई तेज़ कर दी थी ।हमारी. लड़ाई के नेता , महात्मा गांधी थे । वे खुद और उनके साथी जेलों में थे। जेल से बाहर आने पर देश ने उनको पलकों पर बिठाया । गांधी जी की उस लड़ाई में जो लोग उनके साथ नहीं थे , जनता ने उन राजनातिक ताक़तों का तिरस्कार कर दिया था।आज़ादी की लड़ाई के बाद जब भी युद्ध हुआ है , अपने देश के लोग उसके खिलाफ एकजुट हुए हैं । मैंने भी वचपन में65 और 71 के पाकिस्तान के खिलाफ हुए युद्ध के दौरान अपने गाँव और स्कूल में माहौल देखा है।65में मैं . छोटा था और दो वर्ष अपनी माँ के साथ लगातार अपने पैतृक गाँव जो बिहार के नालन्दा जिले में ह्रै ,रहा हूँ।मैंने अकाल और युद्ध की विभिषका का अनुभव किया है।लाल बहादुर शास्त्री जी सन 65 के युद्ध के नेता थे ,देश के प्रधानमंत्री ।उन्होने.कहा कि युद्ध ने हमारे अन्न के भंडार पर भी हमला किया है।उस युद्ध के पहले 63 से 65 मेरे पैतृक गाँव -जवार में भी अकाल पडा था।62 की लड़ाई में चीन से मिली शिकस्त को देश ने झेला था। 65 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई के समय खज़ाना भी खाली था लेकिन देश अपने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ था ।उन्होंने कहा कि खाना कम खाओ , एक दिन का उपवास रखो ।उन्होंने कहा कि युद्ध के लिए धन चाहिए ।.लोगों ने अपने घर का सोना दान करना शुरू कर दिया । ऐसी भी ख़बरें आई थीं कि नवविवाहिताओं ने अपने गहने तक दान कर दिए ।उसके बाद 71 की लड़ाई हुई । मैं भिलाई में था लेकिन मेरे एक चाचा अपनी सेना की टुकड़ी के साथ युद्ध के मैदान में सीना ताने डटे थे।जब भी रेडियों पर खबरें आती मेरे पिता चाचा की रेजीमेंट की समाचार को बड़ी चाव से सुनते और सुनाते थे क्योंकि वे स्वंम भी अंग्रेजों के जमाने के फौजी थे।देश की प्रमुख विरोधी पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐलान कर दिया था कि देश इंदिरा जी के साथ खड़ा है ।अमरीका ने भारत का विरोध किया तो आजतक भारतीय जनमानस में अमरीका को एक शत्रु के रूप में ही माना जाता है .
किसी भी युद्ध के लिए मेडिकल सुविधाओं के लिए कोई देश तैयार नहीं होता है । अपने देश में तो पहले से ही उसकी स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी । ज़ाहिर है , परेशानी आयेगी ।मौजूदा युद्ध में पूरी दुनिया का दुश्मन कोरोना वायरस है । उसके खिलाफ सबको लामबंद होने की ज़रूरत है। मौजूदा स्थिति में हमारी लड़ाई के कमांडर -इन-चीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।जिस सेना की वे अगुवाई कर रहे हैं उसमें कोई जनरल और कर्नल नहीं है।उस लड़ाई में उनकी फ़ौज में देश के सभी डाक्टर , पैरामेडिकल विशेषज्ञ और चिकित्सा कर्मचारी शामिल हैं ।देश की जनता को एकजुट करने के लिए उन्होंने कुछ तरीके अपनाए हैं । उनसे हममें से बहुत लोगों की असहमति हो सकती है , लेकिन मैं व्यक्तिगत रूप से उन तरीकों के विरोध करने को तैयार नहीं हूँ। मैं यह भी मानता हूं कि हमारी सीमित मेडिकल सुविधाओं के मद्दे-नज़र अस्पताल में बीमार लोगों की देखभाल संभव नहीं हो पायेगी ।इसलिए मैंने लॉकडाउन का कभी विरोध नहीं किया लेकिन एकाएक विना ।किसी. योजना के लागू करने पर अपनी टिप्पनी जरूर दी। लाक आउट के तरीके पर उसके चलते बहुत सारे मजदूरों को तकलीफ उठानी पडी क्योंकि उस नीतिगत फैसले को लागू करने की सही तरकीब मंत्रियों और अधिकारियों ने नहीं बनाई थी ।जो बीमारी छू लेने से लग जाती हो उसको रोकने का सबसे कारगर तरीका लॉकडाउन ही है ।
जब प्रधानमंत्री ने अपने घर के सामने खड़े होकर ताली बजाने को कहा तो लगा कि आज की परिस्थिति में देश की जनता का मूड समझने का एक अच्छा तरीका है। हालांकि उस में भी कुछ लोगों न सड़कों पर भीड़ करके जुलूस की शक्ल में निकल पड़े थे।. उसके बाद उन्होंने लोगों से दिया जलाने को कहा । अपने टीवी संबोधन के समय उन्होंने बार बार कहा था कि दिया अपने घर में ही रहकर जलाना है , बाहर नहीं निकलना है लेकिन उनके समर्थक ही बाहर निकलकर पटाखे चलाने लगे । मोमबत्ती या दिया सहानुभूति का प्रतीक है , जबकि पटाखे जश्न का संकेत हैं । पटाखे जलाने वालों की मैं.निंदा करताहूँ लेकिन दिपक और मोमबती जलाने वालों का विरोध इसलिए नहीं किया जाना चाहिए कि नरेद्र मोदी का हर हाल में विरोध करना है । किसी भी बड़ी लडाई में सिम्बल का महत्व होता है ।. जब गांधी जी ने दांडी मार्च करके एक मुट्ठी नमक उठाया था तो लोगों ने उसका भी मजाक उड़ाया था। एकता के सामने सब कुछ हासिल करने की ताकत देश को मिली थी । इसलिए कोरोना के युद्ध के दौरान कमांडर-इन-चीफ की बात को मानते रहने में भलाई है क्योंकि यह लड़ाई भी अनंतकाल तक नहीं चलेगी ।जब इस से उबर जायेंगे तो इन सारे फैसलों की विवेचना की जायेगी ।उसका अवसर भी आयेगा लेकिन फिलहाल तो नरेंद्र मोदी की नेतृत्व को स्वीकार कर कोरोना के विस्द्ध युद्ध में मैं अपने पुरे परिवार और बुघवार बहुमाध्यम समुह के साथ सामिल हूँ।
जय हिन्द।जय भारत।।
*बुघवार बहुमाध्यम समाचार सेवा
कोरोना के खिलाफ जारी जंग में शामिल हूँ कृब्ण देव सिंह